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Thursday, October 31, 2024

मंदिर में नहीं है एक भी मूर्ति, दीपावली पर किसको पूजने जाते हैं भक्त, बरसती है कृपा

निवाड़ी: रामराजा की प्रसिद्ध नगरी ओरछा को बुंदेलखंड की अयोध्या भी कहा जाता है। यहां एक लक्ष्मी मंदिर स्थित है, जिसमें पिछले 41 वर्षों से कोई मूर्ति नहीं है। इसके बावजूद, दीपावली पर यहां दिया जलाने के लिए भक्तों की भीड़ लगती है। 17वीं सदी में बना यह मंदिर अपनी अद्भुत कलाकृति की वजह से श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है।
कभी बुंदेलखंड राज्य की राजधानी रही ओरछा रियासत, आज मध्य प्रदेश के सबसे छोटे जिले निवाड़ी की तहसील है। यहां जामुनी और बेतवा नदी के किनारे बसा यह ऐतिहासिक नगर अपने अंदर कई सांस्कृतिक धरोहरों को संजोए हुए है, जिसे देखने के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी सैलानी आते हैं। ओरछा में स्थित रामराजा मंदिर, जहांगीर महल, राजा महल, राय परवीन महल, चतुर्भुज मंदिर और लक्ष्मी मंदिर खास हैं।

लक्ष्मी मंदिर में 41 साल से नहीं है मूर्ति
इसमें 17वीं सदी की शुरुआत में बना लक्ष्मी मंदिर अपने आप में खास है। इसे 1622 ईस्वी में वीर सिंह देव ने बनवाया था। यह ओरछा के पश्चिम में एक पहाड़ी पर स्थित है, लेकिन यह पिछले 41 वर्षों से मूर्ति विहीन है। दरअसल, 1983 में मंदिर की मूर्तियां चोरी हो गई थीं, तभी से इस मंदिर का गर्भगृह का सिंहासन सूना पड़ा है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसमें बनी कलाकृतियां हैं। यहां 17वीं और 19वीं शताब्दी के चित्र बने हुए हैं। चित्रों के चटकीले रंग इतने जीवंत लगते हैं, जैसे वे हाल ही में बने हों। इसके अलावा, रामायण, महाभारत और भगवान कृष्ण की आकृतियां भी बनी हैं।
उल्लू की चोंच के आकार का मंदिर
बुंदेलखंड सहित पूरे देश में यह इकलौता मंदिर है, जिसका निर्माण तत्कालीन विद्वानों द्वारा श्रीयंत्र के आकार में उल्लू की चोंच को दर्शाते हुए किया गया है। मान्यता है कि दीपावली के दिन इस सिद्ध मंदिर में दीपक जलाकर मां लक्ष्मी की पूजा करने से वह प्रसन्न होती हैं। कहा जाता है कि 1622 में राजा वीर सिंह देव ने ओरछा में कई ऐतिहासिक इमारतों के साथ इस मंदिर का निर्माण तत्कालीन विद्वानों के द्वारा श्री यंत्र के आकार में उल्लू की चोंच को दर्शाते हुए तांत्रिक विधि से कराया था।
Niwari: The famous town of Orchha, known as the Ayodhya of Bundelkhand, is home to a Lakshmi temple that has not had an idol for the past 41 years. Nevertheless, devotees flock here to light lamps during Diwali. Built in the 17th century, this temple has become a center of attraction for devotees and tourists alike due to its extraordinary artwork. Lord Rama is worshipped as a king.
Once the capital of the Bundelkhand state, the Orchha princely state is now a tehsil in Niwari, the smallest district of Madhya Pradesh. Situated along the banks of the Jamuni and Betwa rivers, this historical town preserves many cultural heritage sites, attracting visitors from both India and abroad. Notable sites in Orchha include the Ram Raja Temple, Jahangir Mahal, Raja Mahal, Rai Parveen Mahal, Chaturbhuj Temple, and the Lakshmi Temple.
No idol in the Lakshmi Temple for 41 years
The Lakshmi Temple, built in the early 17th century, is special in itself. Constructed in 1622 AD by Vir Singh Deo, it is located on a hill to the west of Orchha. However, it has been devoid of idols for the past 41 years. In fact, the temple's idols were stolen in 1983, leaving the throne in the sanctum empty ever since. The temple is especially notable for its artwork, featuring paintings from the 17th and 19th centuries. The vibrant colors of these paintings appear so lively that they seem to have been created recently. Additionally, there are depictions of figures from the Ramayana, Mahabharata, and Lord Krishna.
Temple shaped like an owl's beak
This temple is unique in Bundelkhand and across the country as it was constructed by contemporary scholars to represent the shape of an owl's beak in the form of a Shree Yantra. It is believed that lighting a lamp in this sacred temple on Diwali and worshipping Goddess Lakshmi pleases her. It is said that in 1622, King Vir Singh Deo had this temple constructed, along with many historical buildings in Orchha, using tantric methods, designed to reflect the owl's beak in the shape of a Shree Yantra.

झारखंड के कालीबाड़ी मंदिर में दी जाती है कोहड़े की बलि,पूरी होती हैं श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं ।

झारखंड के कालीबाड़ी मंदिर में दी जाती है कोहड़े की बलि,पूरी होती हैं श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं । 

बोकारो: कालीबाड़ी मंदिर में शुरुआत से ही जीव हत्या पर पूर्ण रोक है और बलि प्रथा को पुरा करने के लिए पंडित जी द्वारा कोहड़ा ,ईख,और खीरा की बलि दी जाती है व माता को फल और फूल चढ़ाए जाते हैं । 
बोकारो के सेक्टर 8 में स्थित कालीबाड़ी मंदिर झारखंड का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जहां मां काली की पूजा प्राचीन बंगाली परंपराओं के अनुसार की जाती है. वर्ष 1985 में स्थापित इस मंदिर में, हर साल दीपावली की रात एक खास पूजा का आयोजन होता है, जिसमें 108 दीयों को प्रज्वलित कर मां काली की विशेष आराधना की जाती है. इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां एकत्र होते हैं और रातभर चलने वाली इस पूजा में सम्मिलित होकर मां काली का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
कालीबाड़ी मंदिर की विशेष बलि प्रथा :
कालीबाड़ी मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यहां बलि प्रथा का पालन करते हुए जीव हत्या से परहेज किया जाता है. यहां बलि के रूप में कोहड़ा (कद्दू), ईख, और खीरा अर्पित किए जाते हैं. इस परंपरा से पर्यावरण और पशु अधिकारों का सम्मान होता है, जो मानवता और करुणा का प्रतीक भी है. इस अनूठी बलि प्रथा के चलते मंदिर में आस्था रखने वाले श्रद्धालु इसे और भी पवित्र मानते हैं.
मंदिर में मां काली के साथ राधा-कृष्ण और शिवालय की उपस्थिति मंदिर में मां काली के अलावा राधा-कृष्ण और शिवालय भी स्थित हैं, जो इसे एक बहुआयामी धार्मिक स्थल बनाता है. नियमित रूप से पूजा-अर्चना के लिए यहां आने वाले श्रद्धालु, इस पावन स्थल से गहरी आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति का अनुभव करते हैं. भक्त दुर्गेश, जो वर्षों से यहां पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं, मानते हैं कि मां काली उनकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं और उन्हें यहां आने पर एक सकारात्मक ऊर्जा मिलती है.
कालीबाड़ी मंदिर :
 आस्था और विश्वास का प्रतीक दीपावली के पावन पर्व पर कालीबाड़ी मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं और मां काली का आशीर्वाद पाते हैं. यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि समाज में आस्था और विश्वास का प्रतीक भी है. यहां की पवित्रता और श्रद्धा के प्रति लोगों का विश्वास, इसे झारखंड के धार्मिक स्थलों में एक खास स्थान प्रदान करता है.
इस अनूठी परंपरा और भक्ति भावना के चलते बोकारो का कालीबाड़ी मंदिर हर दीपावली पर भक्तों से खचाखच भरा रहता है, और मां काली के आशीर्वाद के लिए इस मंदिर की विशेष मान्यता है.
Kali Temple of Jharkhand: Offering Pumpkin Sacrifice Fulfills Devotees' Wishes. 

Bokaro: Since its inception, the Kali Temple in Bokaro has maintained a strict prohibition on animal sacrifice. Instead, as part of the sacrificial ritual, pumpkins, sugarcane, and cucumbers are offered by the priests, while fruits and flowers are dedicated to the Goddess. 
Located in Sector 8, this Kali Temple is one of Jharkhand's prominent religious sites, where the worship of Goddess Kali follows ancient Bengali traditions. Established in 1985, the temple hosts a special ritual every year on Diwali night, where 108 lamps are lit to perform special worship of Goddess Kali. A large number of devotees gather here to participate in this overnight ritual and seek blessings from the Goddess.
Unique Sacrificial Tradition of Kali Temple:
The most distinctive aspect of this temple is that, while following the tradition of sacrifice, it strictly avoids any harm to living beings. Instead, items such as pumpkins, sugarcane, and cucumbers are offered as sacrifices. This tradition shows respect for the environment and animal rights, symbolizing humanity and compassion. Because of this unique sacrificial practice, devotees who hold faith in this temple consider it even more sacred.
Presence of Radha-Krishna and Shiva in the Temple:
Alongside the idol of Goddess Kali, the temple also houses idols of Radha-Krishna and a Shiva shrine, making it a multidimensional religious site. Devotees who regularly come here for worship feel a deep spiritual energy and peace at this holy site. Durgesh, a longtime devotee, believes that Goddess Kali fulfills all his wishes, and he experiences a positive energy whenever he visits.
Kali Temple: A Symbol of Faith and Devotion
On the auspicious occasion of Diwali, devotees from far and wide visit the temple to receive the blessings of Goddess Kali. This temple is not only a place of worship but also a symbol of faith and devotion in society. The purity and devotion associated with this place have earned it a special place among Jharkhand's religious sites.
Due to this unique tradition and spirit of devotion, the Kali Temple in Bokaro remains crowded with devotees every Diwali, holding a significant place for those seeking the blessings of Goddess Kali.