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Saubhagya Bharat News

हम सौभाग्य भारत देश और दुनिया की महत्वपूर्ण एवं पुष्ट खबरें उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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The Saubhagya Bharat

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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

अज्ञात वाहन ने बाइक चालकों की मारी टक्कर मौके पोर मौत जाने पूरी बात ?

बहरागोड़ा प्रखंड क्षेत्र को बरसोल थाना क्षेत्र मे मंगलवार को एन एच 49 पर दारिशोल फ्लाईओवर के समीप अज्ञात वाहन की चपेट में आने से बाइक चालक की मौत हो गई.सूत्रों से मिली जानकारी कुमारडूबी पंचायत अंतर्गत मालकुंडा गांव के गणेश्वर नायक (35) अपने मोटरसाइकिल पर सवार होकर मुर्गी लाने के लिए पश्चिम बंगाल के फेको बाजार गए थे.
 वहां से लौटते समय किसी अज्ञात वाहन पीछे से टक्कर मारने पर बुरी तरह से घायल हो गया था .वहीं पुलिस को सुचना मिलते ही हाईवे पेट्रोलिंग वाहन द्वारा त्वरित कार्रवाई करते हुए बहरागोड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया. जहां पर चिकित्सक ने जांच उपरांत मृत घोषित कर दिया. जिसके पश्चात पुलिस ने परिजनों को सूचित कर अपने स्तर से जांच पड़ताल करने में जुटी हुई है.बताया गया की मृतक के माता-पिता मुंबई में काम करते हैं.मृतक घर का इकलौता बेटा था.उधर मृतक के परिजनों को रो-रो कर बुरा हाल हो गया है.

CM की पहल, टूटे अरमानों के बीच उम्मीद की रोशनी I

 तेलंगाना के अंधेरी सुरंग में चार झारखंडी श्रमिक फंसे हैं, घबराये हुये, उम्मीद और अनिश्चितता के बीच झूलते घरवालों की बेचैन आंखें किसी चमत्कार की राह देख रही हैं। इस संकट की घड़ी में झारखंड के CM हेमंत सोरेन के आदेश पर गुमला जिला प्रशासन के अधिकारी श्रमिकों के परिजनों को लेकर तेलंगाना रवाना हो चुके हैं। बिरसा मुंडा हवाई अड्डे से चार परिवारों के सदस्य पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ निकल पड़े। उधर, श्रम विभाग के अधिकारी हालात पर लगातार नजर बनाये हुये हैं।
सुरंग में फंसी जिंदगी
तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले की श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल सुरंग में कुल आठ श्रमिक फंसे हैं, इसमें झारखंड के चार लोग हैं, वहीं, यूपी के दो, एक पंजाब के और एक जम्मू-कश्मीर के हैं। NDRF की टीमें रेस्क्यू में जुटी है। झारखंड का प्रवासी नियंत्रण कक्ष लगातार तेलंगाना प्रशासन और श्रमिकों से संपर्क में है। हर बीतते पल के साथ बचाव दल की कोशिशें तेज हो रही हैं। उम्मीदों का दीप जल रहा है, बस अब एक अच्छी खबर का इंतजार है।

रांची में भूकंप से हिली धरती, जान माल की क्षति नहीं I

बता दें कि सुबह सुबह भूकंप के झटके बंगाल और ओडिशा में देखने को मिला था। इसकी तीव्रता 5.5 बतायी जा रही है। इससे पहले रात के वक्त दिल्ली में भी भूकंप के झटके महसूस किया गया है
रांची में भूकंप के झटके महसूस किये गये हैं। घटना सुबह 5.45 से 6 बजे की है। भूकंप का केंद्र बंगाल की खाड़ी बताया जा रहा है। डोरंडा के रहमत कॉलोनी में लोगों ने इस झटके को महसूस किया है। हालांकि, अभी तक इसकी तीव्रता से जुड़ी कोई जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन विभाग जल्द ही इस पर जानकारी देगा।
बता दें कि सुबह सुबह भूकंप के झटके बंगाल और ओडिशा में देखने को मिला था। इसकी तीव्रता 5.5 बतायी जा रही है। इससे पहले रात के वक्त दिल्ली में भी भूकंप के झटके महसूस किया गया है। बता दें कि रांची के अलावा कोलकाता और ओडिशा के कई जिलों में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए। समुद्र किनारे रहने वाले लोगों को तेजी से झटका महसूस हुआ। ओडिशा में भूकंप की तीव्रता 5.1 थी।
भूकंप क्यों और कैसे आता है?
वैज्ञानिक रूप से समझने के लिए हमें पृथ्वीे की संरचना को समझना होगा। पृथ्वीे टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है और इस पर टैक्टोनिक प्लेट्स तैरती रहती हैं।
कई बार ये प्लेट्स आपस में टकरा जाती हैं। बार-बार टकराने से कई बार प्लेट्स के कोने मुड़ जाते हैं और ज्यारदा दबाव पड़ने पर ये प्ले ट्स टूटने लगती हैं। ऐसे में नीचे से निकली ऊर्जा बाहर की ओर निकलने का रास्ताट खोजती है। जब इससे डिस्ट र्बेंस बनता है तो इसके बाद भूकंप आता है।
कैसे मापी जाती है तीव्रता?
भूकंप को रिक्टर स्केल पर मापा जाता है। रिक्टंर स्केइल भूकंप की तरंगों की तीव्रता मापने का एक गणितीय पैमाना होता है, इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है। रिक्टर स्केल पर भूकंप को इसके केंद्र यानी एपीसेंटर से 1 से 9 तक के आधार पर मापा जाता है। ये स्केकल भूकंप के दौरान धरती के भीतर से निकली ऊर्जा के आधार पर तीव्रता को मापता है।

पेंशनधारियों ने 3.5 करोड़ रुपये किये दान, तो हुआ पंच मंदिर का जीर्णोद्धार I

बगोदर प्रखंड के बेको गांव में साढ़े तीन करोड़ की लागत से पंच शिव मंदिर बनकर तैयार है. यह मंदिर बुजुर्ग पेंशनधारियों के द्वारा इलाका के लोगों को एक सौगात के रूप में दी है. करीब एक सौ साल पुराने जर्जर हो चुके उक्त मंदिर को बुजुर्ग पेंशनधारियों ने अपनी पेंशन की राशि से बेको गांव में एक विशाल पंच शिव मंदिर को बनाया है ताकि यहां आने वाली पीढ़ी के लिए यह मंदिर एक आस्था का प्रतीक बने.
13 वर्षों में पूर्ण हुआ काम
पेंशनधारियों ने किया श्रमदान
बगोदर प्रखंड के बेको गांव में साढ़े तीन करोड़ की लागत से पंच शिव मंदिर बनकर तैयार है. यह मंदिर बुजुर्ग पेंशनधारियों के द्वारा इलाका के लोगों को एक सौगात के रूप में दी है. करीब एक सौ साल पुराने जर्जर हो चुके उक्त मंदिर को बुजुर्ग पेंशनधारियों ने अपनी पेंशन की राशि से बेको गांव में एक विशाल पंच शिव मंदिर को बनाया है ताकि यहां आने वाली पीढ़ी के लिए यह मंदिर एक आस्था का प्रतीक बने. सनद हो कि बेको पूर्वी में एक सौ साल पुरानी पंच शिव मंदिर की स्थिति जर्जर हो चुकी थी. इसे देखते हुए सेवानिवृत्त पेंशनधारियों ने चिंता जताते हुए नये सिरे से मंदिर बनाने का निर्णय लिया. पहले 12 लाख रुपये की लागत से मंदिर की चहारदीवारी करायी. इसके बाद मंदिर निर्माण के लिए ग्रामीणों के साथ राय मशविरा कर सभी से सहयोग की अपील की गयी. सेवानिवृत हुए दो पंचायत के सभी विभागों के पेंशनधारियों ने अपनी जीवन को इस मंदिर के लिए न सिर्फ अपनी पेंशन की राशि ही भेंट की. बल्कि अपना जीवन का एक एक समय भी न्योछावर कर दिया.
2012 में शुरू हुआ जीर्णोद्धार कार्य
पेंशनधारी योधी साव ने बताया कि मंदिर के निर्माण के लिए सबसे पहले वर्ष 2012 में चहारदीवारी बनायी गयी. बेको पूर्वी और बेको पश्चिमी गांव के सभी बुजुर्ग पेंशनधारी (बूढ़ा) समाज के द्वारा गांव में जितने पेंशनधारी थे. सभी ने पांच हजार रुपये हर घर से जमा किया गया. उसके बाद फिर हमलोगों ने इसके निर्माण कार्य धीरे-धीरे शुरू किया. इसके बाद बैठक कर पेंशनधारियों ने निर्णय लिया कि हर पेंशनधारी जो अपनी पेंशन की राशि की पांच सौ रुपये प्रति माह जमा करेंगे. इस तरह से भी उक्त मंदिर को बनाने में सहयोग किया गया. फिर उसके बाद हमलोगों पेंशनधारियों ने सभी को एक ड्यूटी के तहत मंदिर के गेट के बाहर आने-जाने वाले छोटे, बड़े वाहनों से हर दिन तक इच्छा अनुसार कोष संग्रह करने का काम भी किया और धीरे- धीरे करीब 13 साल में मंदिर का निर्माण पूर्ण कराया गया है. आज मंदिर परिसर में भगवान शंकर समेत हनुमान जी की भी प्रतिमा हैं. हजारीबाग में अवस्थित पंच मंदिर के नक्शे पर बनाया गया है. रिटायर शिक्षक भुनेश्वर महतो ने बताया कि पहले यहां पुराना मंदिर हुआ करता था जो पूरी तरह जर्जर हो गया था. सहायक अध्यापक हीरामन महतो बताते हैं कि मंदिर को पूरा करने का पेंशनधारियों में जज्बा ऐसा था कि अपने घर से समय पर एक ड्यूटी की तरह निकल जाते थे. बगोदर के पूर्व विधायक विनोद सिंह ने भी पेंशनधारियों के इस प्रयास की सराहना की है.
इन पेंशनधारियों का रहा सहयोग
पेंशनधारियों में मनोहर यादव, लीलो यादव, खेलो साव, छोटन साव, बुधन रजक, हिरामन साव, प्रेम महतो, भूनेश्वर महतो, सरजू महतो, घनश्याम सिंह, सुखदेव साहु, जोधो साव, मनोहर प्रसाद यादव, लाखो महतो, बालगोविंद यादव, गणेश यादव, बलदेव ठाकुर, दशरथ महतो, प्रेम महतो, बोधी साव, टेकलाल महतो, रघुनंदन दास, खेमलाल महतो, गोवर्धन महतो, गोपी महतो, जीवलाल महतो, सरयू महतो ने सराहनीय भूमिका निभायी.
(गौरव कुमार, बगोदर)

इस साल भी नहीं होगी जनगणना, एनपीआर पर भी संदेह, बजट आवंटन में भारी कटौती I

 भारत में दस-वर्षीय जनगणना 2025 में भी आयोजित होने की संभावना कम दिखाई दे रही है, क्योंकि शनिवार को पेश किए गए आम बजट में इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया के लिए केवल 574.80 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। दरअसल केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 24 दिसंबर 2019 को भारत की 2021 की जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। उस समय जनगणना पर अनुमानित 8,754.23 करोड़ रुपये और एनपीआर पर 3,941.35 करोड़ रुपये खर्च होने की योजना थी।
इसका पहला चरण, यानी हाउस लिस्टिंग और एनपीआर अपडेट का कार्य, पहली अप्रैल से 30 सितंबर 2020 के बीच पूरा किया जाना था, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया। तब से लेकर अब तक सरकार ने जनगणना के नए कार्यक्रम की घोषणा नहीं की है। 2025-26 के बजट में जनगणना, सर्वेक्षण और सांख्यिकी/रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (आरजीआई) के लिए केवल 574.80 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। यह राशि 2021-22 के बजट की तुलना में काफी कम है, जब 3,768 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। 2024-25 में भी इस मद में 572 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था।

साग-भात और साग-रोटी खाने का मजा ही कुछ और है, जानना है तो जरा समझिए I

 भारत जैसे देश में सांस्कृतिक रूप से जो विविधता भाषा और वेशभूषा को लेकर देखने को मिलती है, वैसा ही कुछ खान-पान को लेकर भी परिलक्षित होता है। अलग-अलग क्षेत्र में खान-पान की अलग-अलग विशेषताएं अन्य जगहों पर भी प्रभाव डालती हैं। मौसम के अनुसार खानपान में भी बदलाव देखा जाता है। जाड़े के समय में हम तरह-तरह के कुछ अलग-अलग खाते हैं। इस सीजन में खेतों में सरसों और चना का साग खूब होता है और जहां होता है, वहां के लोग चावल और रोटी के साथ इसका इस्तेमाल करते हैं। बिहार उत्तर प्रदेश को देखिए तो साग-भात खाने की रुचि दिखती है, तो पंजाब में साग-रोटी की रुचि। आज जानते हैं कुछ सागों के बारे में।
पंजाब में रोटी-साग का प्रचलन

कहा जाता है कि सरसों का साग पंजाब की बेहद रुचिकर डिश है और ठंड के दिनों में हर घर में बनती है। इस मौसम में भारत के अलग-अलग राज्यों में कई तरह के अलग-अलग पारंपरिक साग बनाए जाते हैं। इस डिश को सरसों के साग और कुछ मसालों का उपयोग करके बनाया जाता है। इसे बनाते समय पालक और बथुआ भी डाला जाता है।
पश्चिम बंगाल और ओडिशा का की अलग रुचि
जानकार बताते हैं कि ओडिशा में लोग गुंडी साग बड़े चाव से खाते हैं। इस साग को गुंडी के पत्तों की मदद से बनाया जाता है। गुंडी के पत्तों को पारंपरिक ओडिशा के मसालों के साथ पकाया जाता है। साई भाजी दाल, सब्जियों और पालक और अन्य साग का एक बैलेंस है। इसे बनाते समय मौसमी साग जैसे मेथी के पत्ते, डिल और ताजा पालक आदि का इस्तेमाल किया जाता है। उबालने पर, चने की दाल प्रोटीन और क्रीमी टेक्सचर देती है। टमाटर, गाजर और आलू जैसी सब्जियां इस डिश के पोषक तत्वों को बढ़ाती है। लाल साग भाजा विशेष रूप में पश्चिम बंगाल में खाया जाता है। इसे अमरनाथ के पत्ते यानी लाल साग की मदद से तैयार किया जाता है। स्वादिष्ट ही नहीं अत्यंत पौष्टिक भी होता है।

मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू, आई रुत मस्तानी, कब आएगी तू, आ, चली आ I

मुंबई की माया नगरी में अपने-अपने समय में अभिनेताओं ने अपने-अपने तरीके से झंडा गड़ा। लेकिन, राजेश खन्ना ने जैसी पापुलैरिटी हासिल की, वह कहीं और बहुत कम देखने को मिलती है। राज कपूर, दिलीप कुमार और देवानंद के जमाने के बाद एक लंबे समय तक फिल्मी दुनिया में राजेश खन्ना ने राज किया। अपने समय में अमिताभ बच्चन की क्रांतिकारी छवि कुछ और थी और राजेश खन्ना की कुछ और। आनंद और नमक हराम जैसी फिल्मों में राजेश खन्ना ने यह दिखाया कि वह एक अलग किस्म की कला का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अमिताभ बच्चन में नहीं हो सकता। राजेश खन्ना को आज भी उनके निधन के कई वर्षों के बाद काका के नाम से ही जाना जाता है। आराधना फिल्म कब गीत याद कीजिए मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू, आई रुत मस्तानी, कब आएगी तू, आ, चली आ। 
46 साल का अद्भुत फिल्मी करियर
कहा जाता है कि उनकी अदाकारी, स्टारडम और फैंस की दीवानगी ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को एक नया मुकाम दिया। लोग आज भी उनकी फिल्मों और शानदार अभिनय को याद करते है। राजेश खन्ना के नाम 6 बड़े ऐसे रिकॉर्ड हैं, जिनमें से कुछ को आज तक कोई नहीं तोड़ पाया। करियर की शुरुआत 1966 में फिल्म ‘आखिरी खत’ से की थी। अपने 46 साल के करियर में उन्होंने 180 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। फैंस आज भी उनको प्यार से ‘काका’ ही बुलाते हैं।
7 वर्षों का स्टारडम
याद कीजिए, 1969 से 1976 के बीच राजेश खन्ना का स्टारडम अपने चरम पर था। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोग उनकी गाड़ी से उड़ी धूल को तक चूम लेते थे। कई फीमेल फैंस उन्हें अपने खून से चिट्ठियां लिखती थीं।
बताया जाता है कि राजेश खन्ना ने 1969 से 1987 तक बॉलीवुड के सबसे ज्यादा फीस पाने वाले अभिनेता का खिताब अपने नाम किया है। 1980 से 1987 तक उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ मिलकर ये रिकॉर्ड बनाए रखा। ‘आराधना’ की सफलता के बाद उन्होंने अपनी फीस बढ़ाकर 4.5 लाख रुपये कर दी थी, जो उस दौर में एक बड़ी रकम मानी जाती थी।
4 गोल्डन जुबली फिल्में
यह रिकॉर्ड है कि हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना ने अपने करियर में 74 गोल्डन जुबली हिट और 22 सिल्वर जुबली हिट फिल्में दीं। गोल्डन जुबली फिल्मों में ‘आराधना’, ‘आनंद’, ‘अमर प्रेम’, ‘कटी पतंग’, ‘सफर’ और सिल्वर जुबली हिट में ‘डोली’, ‘इत्तेफाक’ और ‘छोटी बहू’ जैसी शानदार फिल्मों के नाम शामिल है।