सीएजी की रिपोर्ट दे रहा गवाही, बाबूलाल ने कहा-हेमंत सरकार का पिछला कार्यकाल आर्थिक कुप्रबंधन व लूट का, विगत पांच वर्षों का श्वेतपत्र जारी करे राज्य सरकार
रांची: भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने शुक्रवार को झारखंड सरकार पर सीएजी रिपोर्ट के हवाले से बड़ा निशाना साधा। श्री मरांडी ने कहा कि हेमंत सरकार का पिछला पांच साल वित्तीय कुप्रबंधन, लूट व भ्रष्टाचार का रहा है। उन्होंने राज्य सरकार से पिछले 5 साल का श्वेत पत्र जारी करने की मांग की। बाबूलाल कहा कि झारखंड में चिकित्सा कर्मचारियों की भारी कमी की रिपोर्ट कैग ने दी है। ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2022 तक, चिकित्सा अधिकारियों व विशेषज्ञों के 3,634 स्वीकृत पदों में से 2,210 पद खाली रह गए, जो कुल आवश्यकता का 61 प्रतिशत है।
ऑडिट में झारखंड के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा अधिकारियों, स्टाफ नर्सों और पैरामेडिक्स की भारी कमी का खुलासा हुआ है। इसके अलावा, आवश्यक दवाओं की गंभीर कमी का भी पता चला। 2020-21 व 2021-22 के बीच सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पतालों व मेडिकल कॉलेजों में 65 प्रतिशत से लेकर 95 प्रतिशत तक आवश्यक दवाओं की कमी पाई गई।
भारत सरकार ने कोविड प्रबंधन के लिए 483.54 करोड़ विमुक्त किए थे
पूर्व सीएम ने कहा कि कैग रिपोर्ट में साफ है कि राज्य सरकार कोविड के लिए दी राशि खर्च नहीं कर सकी। सीएजी ने पाया है कि भारत सरकार ने कोविड प्रबंधन के लिए 483.54 करोड़ रुपये विमुक्त किए थे, इस राशि के विरुद्ध झारखंड सरकार को अपने हिस्से की 272.88 करोड़ की राशि विमुक्त करनी थी। कुल प्रावधान 756.42 के विरुद्ध राज्य सरकार ने केंद्रीय राशि का 291.87 करोड़ और राज्य का 145.10 करोड़ ही विमुक्त किया। यानी कुल 436.97 करोड़ का ही उपयोग किया। यह कुल जारी राशि का महज 32 प्रतिशत था। कहा कि सीएजी ने रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग ने मार्च 2020 से दिसंबर 2021 के बीच राज्य आपदा कोष की 754.61 करोड़ की राशि कोविड 19 प्रबंधन के लिए विमुक्त की, लेकिन 539.56 करोड़ का उपयोग ही फरवरी 2022 तक किया गया।
राशि खर्च नहीं होने से कोविड प्रबंधन प्रभावित हुआ। रिपोर्ट में जिक्र है कि कोविड-19 प्रबंधन निधि की राशि का समुचित उपयोग नहीं किए जाने के कारण जिला स्तर पर आरटीपीसीआर प्रयोगशालाएं, रांची में शिशु चिकित्सा उत्कृष्टता केंद्र, सीएचसी, पीएचसी, एचएससी में पूर्व निर्मित संरचनाएं एवं तरल चिकित्सा ऑक्सीजन संयंत्रों की स्थापना नहीं हो पाई। कोविड अवधि के दौरान जिला प्रयोगशालाएं स्थापित नहीं हुईं, इस कारण जिला अधिकारियों को एकत्र किए गए सैंपल को दूसरे जिलों में भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा। परिणामस्वरूप जांच रिपोर्ट प्राप्त करने में पांच दिन से लेकर दो माह से अधिक तक की देरी हुई।
19,125 करोड़ राशि का नहीं दिया उपयोगिता प्रमाण पत्र
बाबूलाल ने कहा कि 19,125 करोड़ राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया, भ्रष्टाचार की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। रिपोर्ट में उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिए जाने पर विभागों में भ्रष्टाचार की आशंका जाहिर की गई है। वित्तिय लेखे पर टिप्पणी में लिखा गया है कि वर्ष 2023-24 के दौरान विभागों द्वारा सहायक अनुदान के तौर पर दी गई 19125.88 करोड़ की राशि के विरुद्ध 5209 उपयोगिता प्रमाण पत्र राज्य सरकार के निकायों व प्राधिकारों के द्वारा जमा नहीं कराए गए। सीएजी की रिपोर्ट में आपत्ति दर्ज करायी गई है कि इस राशि का व्यय किस प्रयोजन में किया गया, इससे संबंधित कोई जानकारी नहीं दी गई। इस राज्य की सीएजी रिपोर्ट में बड़ा खुलासा किया है। लेखा परीक्षा के दौरान बोकारो तथा धनबाद में ऐसे मामले भी सामने आए, जिसमें चार माह में महिला कामगारों को दूसरा बच्चा हुआ जिससे उन्हें दो बार मातृत्व लाभ योजना के तहत 15-15 सौ रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह योजनाओं में अनियमित भुगतान से इंकार नहीं किया जा सकता।
सरकार की मंशा है अस्पताल कम हो जाए
बाबूलाल ने कहा कि आयुष्मान भारत केंद्र सरकार की सबसे महत्वपूर्ण योजना है। इसके तहत हर जरूरतमंद परिवार को साल में पाँच लाख रुपए स्वास्थ पे देने का प्रावधान है। इस पाँच लाख में केंद्र सरकार का 60 प्रतिशत और राज्य सरकार का 40 प्रतिशत का शेयर होता है। झारखंड में यह योजना आयुष्मान भारत मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना के नाम से चलती है। हेमंत सरकार ने अबुआ स्वास्थ योजना की घोषणा की है, जिसके तहत साल में 15 लाख देने की योजना है। कहा कि अब सरकार ने घोषणा तो कर दी है परंतु पैसे खर्च ना करने के लिए एक नई तरकीब निकाली है। इन्होंने एक नोटिफिकेशन निकाला है, जिसके तहत यह योजना शहरी छेत्र में कम से कम पचास बेड का अस्पताल और ग्रामीण क्षेत्र में कम से कम तीस बेडों का अस्पताल मिलेगा। ऐसे में पूरे झारखंड में मुश्किल से 15 अस्पताल ऐसे बचेंगे और ग्रामीण इलाके में तो एक भी नहीं बचेगा। यानी कि सरकार की दो मंशा है- एक तो अस्पताल कम हो जाए ताकि मरीजों की संख्या भी कम हो और पैसे देने ही ना पड़े। और दूसरा बड़े कॉर्पोरेट अस्पताओं को बस आयुष्मान भारत व अबुआ स्वास्थ योजना का पैसा जाए।
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