बाबूलाल ने कहा कि केंद्र की एनडीए सरकार ने राज्य की ओर से मांगे गए पैसे की तुलना में वित्त वर्ष 21-22 में 125.78 प्रतिशत अधिक पैसा दिया। वहीं 22-23 में 116.28 और वित्त वर्ष 23-24 में 110.58 प्रतिशत राशि मांग की तुलना में अधिक दी गई। उन्होंने कहा कि सरकार काम नहीं कर रही है तो केंद्र सरकार पर आरोप लगाकर पल्ला नहीं झाड़े। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में झारखंड को 14 हजार 373 करोड़ रुपए दिया गया।
पैसे का स्रोत नहीं बताया
बाबूलाल ने कहा कि बजट में सरकार ने गिनाया है कि वह किस-किस मद में कितना पैसे खर्च करेगी, लेकिन यह नहीं बताया गया है कि सरकार पैसे कहां से लाएगी। उन्होंने बताया कि सरकार इस वित्त वर्ष में केवल 58.82 प्रतिशत राशि ही जुटा पाई है। उन्होंने कहा कि बजट में पूंजीगत व्यय को कम रखा गया है, जबकि योजना मद में अधिक खर्च दिखाया गया है जो वित्तीय प्रबंधन के हिसाब से ठीक नहीं है। बाबूलाल ने कहा कि विकास योजनाओं को लेकर टेंडर निकाले जा रहे हैं लेकिन पैसे की कमी बता कर काम शुरू नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार पिछले बजट की राशि खर्च नहीं कर पाई है। उन्होंने बताया कि सरकार कृषि और पशुपालन पर बजट का 54 प्रतिशत, पेयजलापूर्ति पर 18.6, खाद्यान्न योजनाओं पर महज 38 प्रतिशत, पंचायती राज पर 36 तथा सूचना प्रोद्योगिकी पर केवल 7.45 प्रतिशत राशि ही खर्च कर पाई है।
उन्होंने कहा कि कहीं से नहीं लगता है कि यह बजट गरीबी उन्मूलन के लिए है। उन्होंने कहा कि राज्य की 41 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है। हाल के दिनों में राज्य में भूख से कोई मौत नहीं हुई, क्योंकि मोदी सरकार ने कोविड काल से राज्य के हरेक व्यक्ति को पांच किलो अनाज मुहैया करा रही है।
जवाबदेही से भाग नहीं सकती गठबंधन सरकार
बाबूलाल मरांडी ने कहा कि राज्य की गंठबंधन की सरकार अपनी जिम्मेवारियों से भाग नहीं सकती है, क्योंकि राष्ट्रपति शासन को मिलाकर उसके शासन के भी 11 वर्ष हो गए हैं। राज्य में स्वास्थ्य की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि विभिन्न जिलों में खुले मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरों की पर्याप्त संख्या नहीं है। यही वजह है जिलों से मरीजों की भीड़ रिम्स आ रही है। उन्होंने कहा कि किसी भी जिले के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी के कारण ऑपरेशन नहीं होता है।
वाजपेयी को नजरअंदाज करने की नहीं थी उम्मीद
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