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सोमवार, 31 मार्च 2025

रेंगोगोड़ा के बेटी ने किया मां का अंतिम संस्कार, शव को दी मुखाग्नि, निभाया संतान होने का फर्ज

मौजूदा दौर में बेटा-बेटी मेंं अब फर्क नहीं रहा। कहते है कि आज के बेटी किसी बेटे से कम नहीं होती, जो काम बेटा कर सकता है, वही काम बेटी भी कर सकती हैं। काम चाहे घर का हो या घर की चारदीवारी से बाहर का। 
एही नहीं बल्कि बेटीयां अब रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ भी रही है। सनातन धर्म में ऐसा परंपरा है कि बेटे ही शव को मुखाग्नि देते है, लेकिन इस परंपरा को तोड़कर सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की एक बेटी अन्नापूर्णा महतो ने अपने माँ का अंतिम संस्कार किया और शव यात्रा में शामिल होकर शव को मुखाग्नि दी । 
ज्ञात हो कि अन्नापूर्णा महतो खरसवां प्रखण्ड के बुरुडीह ग्राम पंचायत अन्तर्गत रेंगोगोड़ा गाँव की निवासी है जो गाँव के मध्य विद्यालय में पारा शिक्षिका के रूप में कार्यरत है। सामाजिक बंधनों से मुक्त इस बेटी ने संतान होने का फर्ज निभाते हुए अपनी मां का अंतिम संस्कार किया और शव यात्रा में शामिल होकर शव को मुखाग्नि दी। इसके अलावे उन्होंने श्राद्धक्रम भी करवाया। 
दरअसल ग्रामपंचात बुरुडीह के ग्राम रेंगोगोड़ा में रहने वाली अन्नापूर्णा महतो की मां सुपालिनी देवी का 20 मार्च 2025 गुरुवार को निधन हो गया था। अन्नापूर्णा महतो के अपने भाई नहीं थे । 
ऐसे में बेटी अन्नापूर्णा महतो ने शमशाान घाट में विधिविधान से अपनी मां का अंतिम संस्कार किया और शव को मुखाग्नि दी। इसके अलावे उन्होंने रविवार को श्राद्धक्रम भी करवाया। 
मौके पर उपस्थित स्थानीय युवा सामाजिक कार्यकर्ता हेमसागर प्रधान ने बताया कि इस बेटी ने समाज में इस गलत धारणा को दूर किया है जिसमें ये कहा जाता है कि सिर्फ बेटा ही मुखाग्नि दे सकता है। 
समाज की ये अवधारणा है कि अंतिम संस्कार में महिलाएं शामिल नहीं होती। यह तथ्य मौजूदा सदी में अव्यावहारिक हो चला है। ऐसा ही उदाहरण पेश की है-रेंगोगोड़ा के कुर्मी समाज की बेटी अन्नापूर्णा महतो ने अपनी माँ को मुखाग्नि दिया और रूढ़िवादी परंपराओं पर कुठारघात किया है जो सराहनीय ही नहीं बल्कि अनुकरणीय भी है। रेंगोगोडा स्थित शमशान घाट पर जब माँ की शव को बेटी मुखाग्नि दी और इसके बाद श्राद्धक्रम की उस दौरान कई समाजसेवी सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे।

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