सबसे पहले कहां और किसने किया था छठ?
*पटना :* छठ का त्योहार ज्यादातर बिहार में मनाया जाता है. विदेशों से भी लोग किसी त्योहार पर भले ही अपने घर न आए लेकिन छठ पर जरूर आते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिहार में छठ की शुरुआत कब और किस जगह से हुई थी. छठ महापर्व की शुरुआत मुंगेर से हुई थी और माता सीता ने पहली बार मुंगेर में उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर एक छोटे पर्वत पर छठ पूजन किया था.
लोक आस्था के महापर्व छठ की मुंगेर में खास अहमियत है. इस पर्व को लेकर यहां कई लोककथाएं प्रचलित हैं. उनमें से एक कथा के अनुसार सीता माता ने यहां छठ व्रत कर इस पर्व की शुरुआत की थी. आनंद रामायण के अनुसार मुंगेर जिले के बबुआ गंगा घाट से दो किलोमीटर दूर गंगा के बीच में स्थित पर्वत पर ऋषि मुद्गल के आश्रम में मां सीता ने छठ किया था. माता सीता ने जहां पर छठ किया था. वह स्थान वर्तमान में सीता चरण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, तब से अंग और मिथिला समेत पूरे देश मे छठ व्रत मनाया जाने लगा.
वहीं छठ पर्व को लेकर धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं भी हैं कि रामायण काल में मुंगेर की गंगा नदी के तट पर मां सीता ने पहली बार छठ व्रत किया था. इसके बाद से छठ व्रत मनाया जाने लगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां सीता ने सबसे पहले मुंगेर में उत्तरवाहिनी गंगा घाट पर छठ व्रत किया था, जिस स्थान पर मां सीता ने छठ पूजा की थी. बबुआ गंगा घाट के पश्चिमी तट पर दियारा इलाके में स्थित मंदिर में माता का चरण पदचिह्न और सूप का निशान एक विशाल पत्थर पर अभी भी मौजूद है.
वह पत्थर 250 मीटर लंबा 30 मीटर चौड़ा है. यहां पर एक छोटा सा मंदिर भी बना हुआ है, जिसे अभी लोग सीता चरण मंदिर के नाम से जानते हैं. वही धर्म के जानकार पंडित का कहना है कि ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने 6 दिनों तक रहकर छठ पूजा की थी, जब भगवान राम 14 साल का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे, तो उन पर ब्राह्मण हत्या का पाप लग गया था. क्योंकि रावण ब्राह्मण कुल से आते थे और इस पाप से मुक्ति पाने के लिए ऋषि मुनियों के आदेश पर राजा राम ने राजसूय यज्ञ कराने का फैसला किया.
इसके बाद मुद्गल ऋषि को आमंत्रित किया गया था लेकिन मुद्गल ऋषि ने अयोध्या आने से पहले भगवान राम और सीता माता को अपने आश्रम बुलाया और भगवान राम को मुंगेर में ही ब्रह्म हत्या मुक्ति यज्ञ करवाया. क्योंकि महिलाएं यज्ञ में भाग नहीं ले सकती थीं. इसलिए माता सीता को मुद्गल ऋषि ने आश्रम में ही रहने का निर्देश दिया और उन्हें सूरज की उपासना करने की सलाह दी.
मां सीता के मुंगेर में छठ व्रत करने का जिक्र आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 33 से 36 में भी है, जहां मां सीता ने व्रत किया वहां माता सीता के दोनों चरणों के निशान मौजूद हैं. इसके अलावा शीला पाठ सूप, डाला और लोटा के निशान हैं. मंदिर का गर्भगृह साल में 6 महीने तक गंगा के गर्भ में समाया रहता है. यह मंदिर 1974 में बनकर तैयार हुआ था, जहां दूर-दूर से लोग छठ व्रत करने के लिए आते हैं. मान्यता है कि छठ व्रत करने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
Chhath festival is mainly celebrated in Bihar, and people from abroad also return to their homes to participate in this festival. But do you know where and how Chhath Puja originated in Bihar?
Chhath Mahaparv began in Munger, and Mata Sita first performed Chhath Puja on the banks of the Uttravahini Ganga River. According to Anand Ramayan, Mata Sita performed Chhath at Rishi Mudgal's ashram, located two kilometers from Babua Ganga Ghat.
Mata Sita worshipped the Sun God for six days, following which the Chhath festival spread across Anga, Mithila, and the rest of India. The spot where Mata Sita performed Chhath Puja is now known as Sita Charan Mandir.
The temple, situated 250 meters long and 30 meters wide, houses Mata Sita's footprints and a soup bowl on a large stone. According to religious scholars, Mata Sita performed Chhath Puja for six days when Lord Rama returned to Ayodhya after completing his 14-year exile.
Rishi Mudgal advised Lord Rama and Mata Sita to perform Sun worship to atone for Brahmin killing. Since women couldn't participate in yajna, Mata Sita stayed at Rishi Mudgal's ashram and performed Chhath Puja.
The Sita Charan Mandir, built in 1974, attracts devotees from far and wide to perform Chhath Puja. The temple's sanctum sanctorum remains submerged in the Ganges for six months annually. Devotees believe that Chhath Puja fulfills all wishes.
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