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Thursday, November 7, 2024

बिहार में महापर्व छठ में धर्म पर आस्था पड़ी भारी, बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं भी भगवान भास्कर को देंगी अर्घ्य

पटना: बिहार में आम से लेकर खास लोग लोक आस्था के महापर्व छठ की तैयारियों में जुटे हैं। सभी लोग छठ में व्यस्त हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस महापर्व पर धर्म से ऊपर आस्था भारी दिख रही है।
प्रदेश के कई इलाकों में बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के लोग न केवल छठ घाटों की साफ-सफाई में लगे हैं, बल्कि इस समाज की महिलाएं भी छठ पर्व मना रही हैं। मुजफ्फरपुर के कालीबाड़ी की रहने वाली मुस्लिम समुदाय की महिला सायरा बेगम ऐसी ही एक महिला हैं जो पिछले आठ साल से छठ पर्व कर रही हैं। ऐसा नहीं है कि इस पर्व का इंतजार केवल सायरा बेगम को रहता है, बल्कि उनके परिवार के अन्य सदस्य भी इस पर्व में उनकी मदद करते हैं।

सायरा बेगम बताती हैं कि वह छठ पर्व पर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित कर अपनी मन्नत पूरी कर रही हैं। वे कहती हैं, "मेरे पति अक्सर बीमार रहते थे। 2015 में मैंने छठी मैया से मन्नत मांगी कि अगर मेरे पति की तबीयत ठीक हो जाएगी तो मैं छठ करूंगी। इसके अगले साल ही छठी मैया की कृपा से मेरे पति की तबीयत ठीक हो गई। तब से लेकर अब तक मैं प्रति वर्ष पूरे विधि-विधान से छठ व्रत कर रही हूं।" उन्होंने कहा कि जब तक वह जिंदा रहेंगी, तब तक यह पर्व करती रहेंगी।
इसी तरह, सीतामढ़ी के बाजितपुर की रहने वाली जैमुन खातून भी पिछले कई वर्षों से पूरे विधि-विधान से छठ मना रही हैं। यही नहीं, इस गांव की कई मुस्लिम महिलाएं भी छठ पर्व करती हैं। इन महिलाओं का कहना है कि उन्हें हिंदू समुदाय के लोगों का भी सहयोग मिलता है।

बिहार की जेलों में भी मुस्लिम समाज के कैदी इस साल छठ मना रहे हैं। मुजफ्फरपुर के शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में भी इस साल बड़ी संख्या में कैदी छठ व्रत की तैयारी में जुटे हैं। बताया जाता है कि इस जेल के 47 महिला और 49 पुरुष कैदी छठ व्रत कर रहे हैं, जिनमें तीन मुस्लिम और एक सिख समुदाय के लोग शामिल हैं।
छठ करने वाली मुस्लिम महिलाएं बताती हैं कि वे छठ महापर्व पूरी शुद्धता के साथ करती हैं और दशहरा खत्म होने के बाद घर में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल भी बंद कर देती हैं।

कुल मिलाकर, कहा जा सकता है कि लोक आस्था का महापर्व छठ न केवल स्वच्छता का संदेश दे रहा है, बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी पेश कर रहा है।

Patna: From common people to the elite, everyone in Bihar is busy preparing for the great festival of faith, Chhath. All are engaged in the festivities. The remarkable aspect of this festival is that faith seems to transcend religious boundaries.

In many areas of the state, a large number of people from the Muslim community are not only involved in cleaning the Chhath ghats (riverbanks) but also celebrating the festival. Saira Begum, a woman from the Muslim community residing in Kalibari, Muzaffarpur, is one such example. She has been observing Chhath for the past eight years. And it’s not just her; her family members also support her in observing this festival.
Saira Begum explains that she offers arghya (water offering) to the Sun God during Chhath to fulfill her vows. She says, "My husband used to fall sick often. In 2015, I vowed to Chhathi Maiya that if my husband's health improved, I would observe Chhath. The following year, with Chhathi Maiya's blessings, my husband recovered. Since then, I have observed the Chhath fast every year with full devotion." She declared that she would continue to observe this festival as long as she lives.

Similarly, Jamun Khatoon from Bajitpur, Sitamarhi, has also been celebrating Chhath with full rituals for several years. Not just her, but several Muslim women from the village also observe this festival. These women state that they also receive support from the Hindu community.
Muslim inmates in Bihar's prisons are also observing Chhath this year. In Shaheed Khudiram Bose Central Jail in Muzaffarpur, a large number of inmates are preparing for Chhath. It’s reported that 47 female and 49 male inmates are observing the festival, including three from the Muslim community and one from the Sikh community.

Muslim women celebrating Chhath say that they follow all rituals strictly and stop using garlic and onion in their households after Dussehra.

Overall, it can be said that Bihar's great festival, Chhath, not only promotes cleanliness but also sets an example of communal harmony.

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