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Thursday, September 12, 2024

"धर्म, कर्म और प्रकृति की पूजा: क्या है करमा पूजा की रहस्यमयी कथा?"

करमा पूजा आदिवासियों, विशेषकर उरांव समुदाय का एक महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार है। वैसे तो अन्य समुदाय जैसे कुड़मी, भूमिज, खड़िया, कोरबा, कुरमाली आदि भी इस धार्मिक त्योहार को मनाते हैं। यह करम त्योहार भादो महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन सर्वत्र धूमधाम से मनाया जाता है। आदिवासी उरांव समुदाय आरंभ से ही कृषि को मुख्य जीवनयापन का साधन मानते आए हैं। भादो महीने तक खेतों में धान की नई फसल तैयार हो जाती है, और फसल के आगमन का स्वागत करते हुए वे नाचते-गाते हुए करम त्योहार की खुशियां मनाते हैं।


इस करम त्योहार में बहनें अपने भाई की दीर्घायु एवं सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। परंपरा है कि भादो एकादशी के पांच दिन पूर्व कुंवारी लड़कियां नदी से टोकरी में बालू लाकर पुजारी के घर तड़के ही जावा (चना, मकई, जौ, गेहूं, उड़द) बोती हैं। इन जावा को पांच दिनों तक धूप-धूवन देकर नाच-गाकर सेवा किया जाता है। इन पांच दिनों में घर और लड़कियों की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

भादो एकादशी के दिन पांच या सात कुंवारे लड़के उपवास रखकर करम डाल काटने जाते हैं। जिस पेड़ से यह डाल काटा जाता है, उससे पहले क्षमायाचना की जाती है (क्योंकि हम प्रकृति के पुजारी हैं)। तत्पश्चात धर्मेश (ईश्वर) की आराधना कर तीन डालियों को काटा जाता है, जिन्हें कुंवारी लड़कियों के हाथों में सौंपा जाता है। इसके बाद, पूरी भीड़ करम देव (डाल) को रीझ-ढंग से नाचते-गाते हुए पूजा स्थल, अखाड़े तक लाती है और उसे गाड़कर स्थापित करती है। इर्द-गिर्द जावा की टोकरियों (जिनमें अब तक छोटे-छोटे पौधे अंकुरित हो चुके होते हैं) को रखकर पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है और पूरी रात नाच-गाकर खुशियां मनाई जाती हैं। अगले दिन, उसी हर्षोल्लास के साथ करम राजा (करम डाल) का विसर्जन किया जाता है।

लोक कथा के अनुसार, करम डाल की विधिवत पूजा-अर्चना करने से गांव और घरों में खुशहाली आती है और सुख-समृद्धि बढ़ती है। 

लोक कथा में वर्णन है कि कर्मा-धर्मा दो भाई हुआ करते थे। दोनों भाइयों में बहुत प्रेम था, किंतु दोनों के स्वभाव अलग थे। धर्मा धार्मिक प्रवृत्ति का था, जबकि कर्मा जिद्दी और गुस्सैल था। एक बार विदेशी दुश्मनों ने कर्मा-धर्मा के राज्य पर आक्रमण कर दिया, जिससे राज्य बदहाली के कगार पर पहुंच गया। ऐसे में कर्मा अपने बिखरे हुए लोगों को एकत्रित कर युद्ध की तैयारी आरंभ कर दी, किंतु धर्मा अपने राज्य के लोगों के साथ खेती-किसानी करते हुए धर्मेश की आराधना कर सुख-समृद्धि की कामना करता रहा।


कालांतर में कई घटनाओं के बाद, जब कर्मा दुश्मनों से युद्ध जीतकर धन-समृद्धि से भरपूर होकर अपने राज्य लौटा, तो वह दिन भादो शुक्ल पक्ष की एकादशी का था। धर्मा उस समय करम डाल की पूजा में लीन था और अपने भाई के आने की सूचना नहीं दे पाया। इससे क्रोधित होकर कर्मा ने करम डाल को उखाड़कर फेंक दिया, जो सात समंदर पार एक टापू में गिरा। इस व्यवधान से धर्मा दुखी हुआ और उसने अपने भाई से क्षमा याचना करने को कहा, किंतु कर्मा अपने विजय के नशे में इसे नहीं मानता।

फलस्वरूप, कर्मा के राज्य में विपत्ति और बदहाली छा गई। बाद में धर्मा के समझाने पर कर्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ और दोनों भाइयों ने उस फेंके गए करम डाल को खोजने का संकल्प लिया। कई घटनाओं के बाद वे उस डाल को वापस अपने राज्य लेकर आए। संयोगवश, यह भी भादो एकादशी का ही दिन था। दोनों भाइयों ने राज्य के लोगों के साथ मिलकर करम डाल को घर के आंगन में गाड़कर पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की और करम गोसाईं की आराधना की। धीरे-धीरे उनके राज्य में खुशहाली लौट आई और सभी लोग सुखपूर्वक जीवनयापन करने लगे।

प्रकृति पर्व करमा त्योहार का संदेश है कि कर्म ही धर्म है और धर्म ही कर्म है। आध्यात्मिक और धार्मिक मार्ग को अपनाकर, अच्छे कर्मों से जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। प्रकृति की पूजा और उसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। 


Karma Puja is a significant religious festival for the Adivasis, particularly the Oraon community. Other communities, such as Kudmi, Bhumij, Kharia, Korba, Kurmali, etc., also celebrate this religious festival. Karma festival is celebrated with great enthusiasm on the Ekadashi (eleventh day) of the Shukla Paksha (bright fortnight) in the month of Bhadra. The Oraon community has always considered agriculture as their main means of livelihood. By this month, new crops of paddy are ready in the fields, and to welcome this new arrival of crops, people celebrate Karma festival with dance and song.

In this Karma festival, sisters pray for the long life and well-being of their brothers. As per tradition, five days before Bhadra Ekadashi, unmarried girls bring sand in a basket from the river early in the morning and sow seeds like gram, maize, barley, wheat, and black gram at the priest's house. These seeds, known as "Java," are worshipped with rituals, dance, and song for five days. During these days, cleanliness is given special attention, both in the household and among the girls.


On Bhadra Ekadashi, five or seven unmarried boys observe a fast and go to cut the Karma branch. Before cutting the branch, they seek forgiveness from the tree (because they are worshippers of nature). Then, after worshipping Dharmesh (God), they ceremoniously cut three branches and hand them over to the waiting unmarried girls. The entire gathered crowd then carries the Karma deity (branch) to the worship ground, known as Akhada, while dancing and singing joyfully. The branches are installed, surrounded by baskets of Java (which have sprouted into small plants by now), and worshipped with full rituals, singing, and dancing throughout the night. The next day, with the same enthusiasm, the Karma Raja (Karma branch) is ceremoniously immersed.

According to folklore, worshipping the Karma branch brings prosperity and happiness to the village and households. 

The folk story describes two brothers, Karma and Dharma, who shared a deep bond of love but had contrasting natures. Dharma was religious, while Karma was stubborn and hot-tempered. Once, foreign enemies attacked their kingdom, plunging it into dire straits. Karma began preparing for war by gathering his scattered people, while Dharma, on the other hand, continued farming with his people and prayed to Dharmesh for prosperity.

After many events, when Karma won the battle against the enemies and returned victorious and wealthy to his kingdom, it happened to be the day of Bhadra Shukla Ekadashi. Dharma, engrossed in worshipping the Karma branch, could not attend to his brother's arrival. This angered Karma, who uprooted the Karma branch and threw it away, which landed on an island across the seven seas. This disruption saddened Dharma, and he asked Karma to seek forgiveness, but Karma, intoxicated by his victory, refused.

As a result, Karma’s kingdom faced severe misfortune and hardship. Realizing his mistake after being counseled by Dharma, Karma joined his brother in the search for the discarded Karma branch. After numerous challenges, they retrieved the branch and brought it back to their kingdom. Coincidentally, it was again the day of Bhadra Ekadashi. Together with their subjects, they installed the Karma branch in their courtyard, worshipped it with complete rituals, and celebrated with dance and music. Gradually, happiness returned to their kingdom, and everyone resumed living peacefully.

The Karma festival, a celebration of nature, conveys the message that duty is religion, and religion is duty. By embracing a spiritual and religious path, one can achieve happiness and prosperity through good deeds. Worshipping nature and protecting it is our ultimate duty.

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